अजय कुमार
असिस्टेंट प्रोफेसर इतिहास
राजकीय महाविद्यालय डुमरियागंज सिद्धार्थ नगर
आज देश -दुनिया के सभी समाचार पत्रों में भारत चीन के खूनी संघर्ष का समाचार प्रमुखता से छाया हुआ है। समाचार पत्रों एवं विशेषज्ञों ने इस संदर्भ में भिन्न भिन्न प्रकार के विचार वयक्त कियें है। विशेषज्ञों के एक समूह ने यह विचार व्यक्त किया है कि चीन में कम्युनिस्ट पार्टी के अंदर चीनी राष्ट्रपति शीन जिनपिंग कमजोर होती पकड़, अंदरुनी समस्याओं के मद्देनजर अपनी मजबूत छवि को चीनी जनमानस के समक्ष पेश करने के लिए चीनी राष्ट्रपति इस कार्यवाही को अंजाम देने का आदेश दिया।
वहीं विशेषज्ञों के दूसरे धड़े का मानना है कि यूरोपीय एवं पश्चिमी देशों ने कोरोना से सम्बंधित आंकड़ों के छिपाने का प्रयास किया है, इससे ध्यान हटाने के लिए चीन ने गलवान घाटी में खूनी संघर्ष को आयाम दिया।
जबकि विद्वानों के एक वर्ग का मत है कि भारत के द्वारा कश्मीर के सम्बन्ध में लियें गये 370 सम्बंधित निर्णय, पाक अधिकृत कश्मीर के बारे में केंद्र सरकार के द्वारा लियें गये नये विचार, अमेरिका के साथ नजदीकी सम्बन्ध आदि को उत्तरदाई माना है।
कुल मिलाकर यह निष्कर्ष निकालता है कि चीन यह कदम हताशा एवं निराशा में उठाया गया है। इससे विश्व समुदाय के नजर में चीन की स्थिति कमजोर हुई।
भारत और चीन का विवाद बहुत पुराना है । इस विवाद को समझने के लिए हमें अतीत में जाना होगा। 1913 ई में भारत और चीन के मध्य सीमा निर्धारण हेतु ब्रिटिश अधिकारी सर हेनरी आर्थर मैकमोहन की अध्यक्षता में गठित समिति ने सीमा का निर्धारण किया। 1 अक्टूबर 1949 ई को चीन की स्वतंत्रता के बाद चीन में आयी माओत्से तुंग की सरकार , भारत के मध्य प्रारंभ में तिब्बत को लेकर मतभेद रहा। 1954ई में भारत चीन के मध्य पंचशील समझौता अस्तित्व में आया। इस समझौते पर भारत के तरफ से तत्कालीन प्रधानमंत्री जवाहरलाल नेहरू एवं उनके चीनी समकक्ष चाउ एन लाई के मध्य हुआ।इस समझौते के तहत भारत ने तिब्बत को चीन का हिस्सा मान लिया। भारत और चीन एक दूसरे के साथ आपसी सम्बन्ध को मजबूत करते हुए एक दूसरे के अंदरूनी मामलों में हस्तक्षेप न करने का वचन दिया। भारत सरकार के द्वारा तिब्बत को चीन का हिस्सा मानना एक कूटनीति भूल रही। तिब्बत पर चीन का नियंत्रण 1948 ई से है।
1957 चीनी अखबार बीजिंग विक्टोरिया ने एक पुराना मानचित्र जारी किया, जिसमें अरूणाचल प्रदेश के हिस्से, सिक्किम , उत्तराखंड के कुछ भू भाग, एवं लद्दाख के क्षेत्रों को चीनी भू भाग बताया गया। यह आरोप लगाया गया कि 1913 ई में अंग्रेजी सरकार ने दबाव डालकर मैकमोहन रेखा का निर्धारण कराया। दूसरे शब्दों में कहा जाय तो सीमा विवाद का यही सार है, 1913 ई में अस्तित्व में आई मैकमोहन रेखा को न मानना। यही 1962 ई के भारत चीन के युद्ध का कारण बना। इस युद्ध में चीन हजारों वर्ग मील जमीन कब्जा कर लिया। दूसरे शब्दों में कहा जाय तो यह स्पष्ट है कि भारत चीन के मध्य सीमा विवाद बहुत पुराना और जटिल है। इस सीमा विवाद को सुलझाने के लिए समय समय पर प्रयास भी हुऐ।1993 ई में तत्कालीन प्रधानमंत्री पी वी नरसिम्हा राव के समय भारत चीन सीमा विवाद को सुलझाने के लिए संयुक्त कार्यदल का गठन हुआ। इसकी कई बैठकें हुई परंतु नतीजा नहीं निकला।
तत्कालीन प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेई जी के समय इस विवाद को सुलझाने के भरसक प्रयास हुए, इसका प्रतिफल भी मिला। सिक्किम को चीन ने भारत अंग माना।
तत्कालीन प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह के समय भारत चीन सीमा कार्यदल का गठन हुआ, जिसमें भारत के तरफ से तत्कालीन राष्ट्रीय सुरक्षा सलाहकार जे एन दीक्षित सदस्य थे।
वर्तमान मोदी जी सरकार के तरफ से विदेश मंत्री एस जयशंकर निरंतर सार्थक प्रयास कर रहे हैं। भारत जब सीमा विवाद को सुलझाने के लिए तत्परता दिखाता है, चीन इससे मुकर जाता है। कहने का मतलब है कि चीन सीमा विवाद के आड़ में सम्राज्यवादी एवं विस्तारवादी नीति को बढ़ावा दे रहा है।
ऐसा नहीं सिर्फ भारत के साथ उसका सीमा विवाद है, अपितु
कई पड़ोसी देशों के साथ साथ चीन सागर के साथ दुनिया के देशों के साथ विवाद जगजाहिर है।
अब दूसरे पड़ोसी देश पाकिस्तान की बात करें, पाकिस्तान में बढ़ता कोरोना संक्रमण, गिरती अर्थव्यवस्था, भूखमरी, चीनी सरंक्षण, कश्मीर के सम्बन्ध में भारत सरकार के लिए गए फैसले के मद्देनजर देखना चाहिए।
Nepal ने भारत से सीमा विवाद के बीच नया मानचित्र स्वीकृत किया
नेपाल ने हाल ही में अपने नए राजनीतिक नक्शे को मंजूरी दे दी है. इस नक्शे में तिब्बत, चीन और नेपाल से सटी सीमा पर स्थित भारतीय क्षेत्र कालापानी, लिपुलेख और लिंपियाधूरा को नेपाल का हिस्सा बताया गया है. नेपाल द्वारा जारी नए नक्शे में नेपाल के उत्तरी, दक्षिणी, पूर्वी और पश्चिमी अंतरराष्ट्रीय सीमाओं को दिखाया गया है. इन सीमाओं से सटे इलाकों की राजनीति और प्रशासनिक व्यवस्थाओं के बारे में भी बताया गया है.
नेपाल के कैबिनेट ने भारत के साथ सीमा विवाद के बीच एक नया राजनीतिक मानचित्र (नक्शा) स्वीकार किया है जिसमें लिपुलेख, कालापानी और लिम्पियाधुरा को नेपाली क्षेत्र में दर्शाया गया है. नेपाल के विदेश मंत्री प्रदीप कुमार गयावली ने इस कदम की घोषणा से हफ्तों पहले कहा था कि कूटनीतिक पहलों के जरिए भारत के साथ सीमा विवाद को सुलझाने के प्रयास जारी हैं.
सांसदों ने संसद में विशेष प्रस्ताव रखा
नेपाल की सत्तारूढ़ कम्युनिस्ट पार्टी के सांसदों ने कालापानी, लिम्पियाधुरा और लिपुलेख को नेपाल की सीमा में लौटाने की मांग करते हुए संसद में विशेष प्रस्ताव भी रखा था. नेपाल के वित्त मंत्री एवं सरकार के प्रवक्ता युवराज खाटीवाड़ा ने 18 मई 2020 को कहा कि प्रधानमंत्री के पी शर्मा ओली की अध्यक्षता में मंत्रिमंडल ने देश के नये राजनीतिक मानचित्र क स्वीकृत किया है.
नेपाल और भारत के बीच विवादित सीमा
लिपुलेख दर्रा नेपाल और भारत के बीच विवादित सीमा, कालापानी के पास एक दूरस्थ पश्चिमी स्थान है. भारत और नेपाल, दोनों कालापानी को अपनी सीमा का अभिन्न हिस्सा बताते हैं. भारत उसे उत्तराखंड के पिथौरागढ़ जिले का हिस्सा बताता है, वहीं नेपाल इसे धारचुला जिले का हिस्सा बताता है.
मंत्रीपरिषद ने सर्वसम्मति से नए नक्शे पर मुहर नेपाल मंत्रीपरिषद में 17 मई 2020 को ही नए राजनीतिक नक्शे को प्रस्तुत किया गया. पूरे दिन चले मंथन और विदेश मामलों के जानकारों से मंत्रणा के बाद 18 मई 2020 को मंत्रीपरिषद ने सर्वसम्मति से नए नक्शे पर मुहर लगा दी. इसमें लिपुलेख के साथ ही कालापानी को अंतरराष्ट्रीय सीमा तय कर सामरिक महत्व के दोनों ही क्षेत्रों को अपना बताया.
भारत ने नक्शा जारी
भारत ने 02 नवंबर 2019 को नक्शा जारी किया. इसमें लिंपियाधुरा, लिपुलेख और कालापानी भी शामिल रहे. इस पर नेपाल ने ऐतराज जताया और इसे वास्तविक नक्शे के विपरीत बताया.
कालापानी विवाद क्या है?
कालापानी लगभग 35 वर्ग किलोमीटर का इलाका है और पिथौरागढ़ जिले का हिस्सा है. उधर, नेपाल सरकार का दावा है कि यह इलाका उसके दारचुला जिले में आता है. साल 1962 में भारत-चीन के बीच युद्ध के बाद से इस इलाके पर भारत के आइटीबीपी के जवानों का कब्जा है. भारत-चीन-नेपाल के त्रिकोणीय सीमा पर स्थित कालापानी इलाका सामरिक रूप से अहम है. नेपाल सरकार का दावा है कि साल 1816 में उसके और तत्कालीन ईस्ट इंडिया कंपनी के बीच हुई सुगौली संधि के अनुसार कालापानी उसका इलाका है.
भारत अब एक मजबूत राष्ट्र है। चाहे बाजार के क्षेत्र में हो, चाहे सैन्य क्षेत्र में हो, या कोई क्षेत्र हो। भारत की पहचान पुरी दुनिया में है। भारत सभी समस्याओं का समाधान स्वयं कर सकता है।
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