भारत के प्रथम प्रधानमंत्री पंडित जवाहरलाल नेहरू का जन्म दिन प्रत्येक वर्ष 14नवम्बर को बाल दिवस के रूप मनाया जाता है। नेहरू जी का जन्म 14 नवंबर 1889 को उत्तर प्रदेश के इलाहाबाद( वर्तमान में प्रयागराज) में एक सम्पन्न परिवार में हुआ था। उनके पिता का नाम मोतीलाल नेहरू एवं माता स्वरुप रानी था। नेहरू की शिक्षा कैम्ब्रिज विश्वविद्यालय से पूर्ण हुई।1912 नेहरू स्वदेश आये। 1918 में रोलेंट एक्ट के विरोध के दौरान इनकी मुलाकात गांधी जी से हुई। इसके बाद गांधी जी के सहयोगी के रूप राष्ट्रीय आंदोलन में भाग लिया।1926 से 1928 तक यह कांग्रेस के महामंत्री रहे।1929 में लाहौर कांग्रेस अधिवेशन में अध्यक्षता की। यही पर पूर्ण स्वराज का प्रस्ताव पारित किया गया।1936 एवं 1937 में कांग्रेस के अध्यक्ष रहे।1941 में गांधी जी ने जवाहरलाल नेहरू को अपना उत्तराधिकारी घोषित किया। अब प्रश्र उठता है कि गांधी जी ने क्यो सरदार वल्लभ भाई पटेल को उत्तराधिकारी घोषित नहीं किया। इसके पीछे कुछ हद तक नेहरू का अन्तर्राष्ट्रीय व्यक्तित्व एवं समाजवादी पृष्ठभूमि उत्तरदायी रही। अब प्रश्र उठता है कि क्या नेहरू एवं पटेल विरोधी थे? नहीं । जहां नेहरू समाजवाद, आधुनिकता के समर्थक, वेस्ट मीनीस्टर प्रणाली, गुटनिरपेक्षता की नीति के समर्थक, वहीं पटेल परम्परागत, पंचायती राज, देशी रियासतों के एकीकरण, आदि के समर्थक थे।
नेहरू आजाद भारत के प्रथम प्रधानमंत्री थे।वह जीवन भर प्रधानमंत्री पद रहे। नेहरू की मौत 27 म ई 1964 को हुआ।
नेहरू के राजनीतिक विचारधारा को चार कोटि में बांटा जा सकता है-
1, स्वतंत्र विदेश नीति गुटनिरपेक्षता
2,नि शस्त्रीकरण
3, धर्मनिरपेक्षता
4, आधुनिकता एवं पश्चिमी करण
नेहरू ने स्वतंत्र विदेश नीति गुटनिरपेक्षता का अवलंबन किया। गुटनिरपेक्षता का आशय- शीत युद्ध के दौरान बने दो गुटों के (पूंजीवादी एवं समाजवादी ) के प्रति तटस्थता की नीति से है। इसका आधार यूगोस्लाविया के तत्तकालीन राष्ट्रपति मार्शल टीटो , मिस्र के राष्ट्रपति गमाल अब्दुल नासिर, इण्डोनेशिया के राष्ट्रपति सुकर्णो के अथक प्रयासों से तैयार हुआ। यह दुनिया के तृतीय देशों का समूह रहा। यह दुनिया के उन देशों का समूह रहा है, जो औपनिवेशिक शक्तियों से स्वतंत्रत हुए थे। भारत गुटनिरपेक्ष आन्दोलन का नेतृत्वकर्ता रहा, नेहरू इसके संस्थापक सदस्यों में रहे। गुटनिरपेक्ष देशों का पहला सम्मेलन 1961 में यूगोस्लाविया की राजधानी बेलग्रेड में हुआ था। इसमें 54 सदस्यों देश के प्रतिनिधियों ने भाग लिया था। आज इसमें सदस्य देशों की संख्या 121 है। कुछ विद्वानों का मानना है कि 1991 में सोवियत संघ के विघटन के बाद शीत युद्ध का अंत हो गया, ऐसे में गुटनिरपेक्ष आंदोलन की प्रासंगिकता खत्म हो गया, परंतु यह सत्य नहीं है।बल्कि गुटनिरपेक्ष देशों की जिम्मेदारी और बढ़ गई। अब दुनिया के गरीब मुल्कों के समक्ष वैश्विक जलवायु परिवर्तन, आतंकवाद एवं सरंक्षणवाद जैसे मुद्दे हैं,अब ये देश इन चुनौतियों से मिलकर लड़े। भारत ने फिलीस्तीन के मुद्दे फिलीस्तीन का साथ देकर नि सन्देह गुटनिरपेक्षता के मूल्यों को महत्व दिया।
नेहरू के राजनीतिक विचारधारा का दूसरा आयाम नि शस्त्रीकरण रहा। नेहरू वैश्विक शांति के पक्षधर रहे। वह दुनिया में बढ़ रहे हथियारों के अंकुश लगाने के पक्षधर रहे। वह विश्व शांति की स्थापना के बड़े समर्थक थे।
नेहरू के राजनीतिक विचारधारा का तृतीय आयाम धर्म निरपेक्षता रहा। नेहरू धर्मनिरपेक्षता के बड़े पैरोकार थे।वह ऐसे प्रधानमंत्री थे, जिन्होंने धर्म को राजनीति पर हावी नहीं होने दिया। इसका उदाहरण सोमनाथ मंदिर के मुद्दे पर तत्तकालीन राष्ट्रपति डॉ राजेन्द्र प्रसाद से मतभेद से समझा जा सकता है। नेहरू की सोच वैज्ञानिक रही।
नेहरू के राजनीतिक विचारधारा का चौथा स्तम्भ आधुनिकतावादी औद्योगिकीकरण एवं पाश्चात्य मूल्यों का समर्थन रहा। जबकि डॉक्टर राजेंद्र प्रसाद का दृष्टिकोण परम्परावादी रहा। नेहरू के शासन काल में ही राउरकेला, दुर्गापुर,भिलाई, बोकारो में औद्योगिक प्रतिष्ठानों की स्थापना हुई। इसके साथ ही साथ जलविद्युत परियोजनाओं की नींव रखी गई।1959 में भाखड़ा नांगल परियोजना का शिलान्यास करते समय, नेहरू ने इन्हें आधुनिक भारत का मंदिर बताया था।
नेहरू की वैज्ञानिक पद्धति के प्रसार की रही।उन्हीं के प्रयासों से आई.आई.टी ,सी.एस.आई.आर.जैसे संस्थानों की स्थापना उन्हीं के प्रयासों से हुई।
नेहरू भारत में पंचायती राज व्यवस्था के सूत्रधार थे।1959मे पंचायती राज व्यवस्था की शुरुआत राजस्थान के नागौर जिले से की।
नेहरू भारत में नियोजन कार्यक्रम के जनक रहे।1950 में योजना आयोग की स्थापना की।इसका अनुसरण उन्होंने तत्तकालीन सोवियत संघ से लिया था।
नेहरू उत्तम कोटि के लेखक भी थे, उन्होंने विश्व इतिहास की झलकियां, एवं भारत की खोज जैसी पुस्तकें लिखी। नेहरू की 130वी जयंती पर हार्दिक नमन एवं श्रद्धांजलि।
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