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Thursday, August 9, 2018

अपनी बांसुरी की धुन से सभी को मंत्रमुग्ध कर देने वाले पं. हरिप्रसाद चौरसिया भारतीय शास्त्रीय संगीत जगत के शिखर पुरूषों में से एक



अपनी बांसुरी की धुन से सभी को मंत्रमुग्ध कर देने वाले पं. हरिप्रसाद चौरसिया भारतीय शास्त्रीय संगीत जगत के शिखर पुरूषों में से एक हैं। उनका जन्म 1 जुलाई 1938 को इलाहाबाद में एक पहलवान के घर हुआ था। चौरसिया को कई राष्ट्रीय और अंतर्राष्ट्रीय सम्मानों से नवाजा गया है। पं. हरिप्रसाद चौरसिया के जीवन से जुड़े महत्‍वपूर्ण तथ्‍य-

🔷 हरिप्रसाद चौरसिया के पिता इलाहबाद के एक मशहूर पहलवान थे। 5 साल की ही उम्र में इनकी माता का देहांत हो गया था। उनके पिता का सपना था कि बेटा भी उनकी तरह पहलवानी करें।

🔷 उन्‍होंने हरिप्रसाद को पहलवानी का गुर सिखाने के लिए प्रशिक्षण की व्यवस्था भी की। लेकिन बचपन से ही उनका रुझान संगीत की ओर था, इसलिए जब उन्हें पहलवानी के लिए अखाड़े में ले जाया जाता तो उनका मन वहां नहीं लगता था और वे भाग जाते थे।

🔷 हरिप्रसाद के परिवार में भी किसी को संगीत से लगाव नहीं था, ऐसी स्थिति में वे छुपकर संगीत की शिक्षा लेने लगे। शुरुआत में अपने पड़ोसी पंडित राजाराम से संगीत की बारीकियां सीखीं।बाद में इनकी मुलाकात वाराणसी के मशहूर बांसुरीवादक पंडित भोलेनाथ प्रसन्ना से हुई।

🔷 लगभग 8 सालों तक गुरु प्रसन्ना से शिक्षा लेने के बाद पं. हरिप्रसाद बांसुरी-वादन में इतने कुशल हो गए कि उनकी नियुक्ति आकाशवाणी में हो गई। उन्होंने अपना कॅरियर ऑल इंडिया रेडिओ से शुरू किया।

🔷 एआईआर कटक, ओडिशा में काम करते हुए ये बेहतरीन बांसुरीवादक के तौर पर उभरे और इस दौरान इन्होंने कुछ रचनाएं भी लिखीं। कुछ सालों बाद इन्हें 1960 में कटक से ऑल इंडिया रेडियो मुंबई में उनका स्थानांतरण हो गया।

🔷 दिलचस्प बात ये थी कि भले ही हरिप्रसाद पहलवान बनने के इच्छुक न रहे हों, पर इन्होंने कुश्ती की शुरूआती ट्रेंनिंग हासिल की थी। इसका फायदा इनको संगीत सीखने में मिला और वह प्रशिक्षण उनकी सहनशक्ति और फेफड़ों की शक्ति बढ़ाने में कारगर सिद्ध हुआ, जो कि एक बांसुरीवादक के लिए काफी अहम होता है।

🔷 मुंबई में रहते हुए मशहूर संगीतकार बाबा अलाउद्दीन खान की बेटी अन्नपूर्णा देवी से मिले, जो भारतीय शास्त्रीय संगीत शैली में सुरबहार वाद्ययंत्र बजाने वाली महिला उस्ताद थीं। अन्नपूर्णा देवी के मार्गदर्शन में रहकर इनकी कला को एक नया आयाम मिला।

🔷 इसके बाद चौरसिया ने एआईअार को छोड़ दिया और संतूर-वादक पंडित शिवकुमार शर्मा के साथ जोड़ी बनाकर फिल्मों में संगीत देना शुरू कर दिया। शिव-हरि के नाम से मशहूर इस जोड़ी ने चांदनी, विजय, सिलसिला, लम्हे, डर जैसी फिल्मों में सुपरहिट संगीत दिया।

🔷 इस दौर में पंडित हरिप्रसाद ने काफी प्रसिद्धी कमाई और उनका नाम देश के साथ-साथ विदेशों में भी मशहूर हुआ। उन्होंने शास्त्रीय संगीत से जुड़े कई विदेशी कॉन्सर्टस में भी भाग लिया। यही वह दौर था जब फिल्मों में भी उनका काफी बोलबाला रहा।

🔷 उनकी अद्वितीय प्रतिभा के लिए भारत सरकार ने उन्हें पद्म भूषण और पद्म विभूषण से अलंकृत किया। उन्हें फ्रांसीसी सरकार का नाइट ऑफ द आर्डर ऑफ आर्ट्स एंड लेटर्स पुरस्कार और ब्रिटेन के शाही परिवार की तरफ से भी खास सम्मान दिया गया है।

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